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"अवसाद से बचना है तो शतरंज खेलें" - धर्मेंद्र कुमार

by अंतर्राष्ट्रीय निर्णायक धर्मेंद्र कुमार - 17/06/2020

सुशांत सिंह के आत्महत्या ने कई सवाल छोड़ दिये हैं। बहुत से कारणों पर कयास लगाया जा रहे है। आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। सहानुभूति के नाम पर राजनीति भी अपने शबाब पर है। पर ये सब कब तक ?? दो दिन में कोई नया "विषय" भुला देगा इस घटना को। और हमारे लिये सुशांत स्मृतियों में रह जाएंगे। अंततः, जानेवाला तो चला गया........... समस्याओं अंतहीन है और इससे कोई बच नही सकता। अंतर्राष्ट्रीय निर्णायक धर्मेंद्र कुमार के लिखे इस लेख में आप पढे कैसे वह मानते है की बच्चो को शतरंज सिखाना उन्हे अवसाद से बचने का एक टीका देने जैसा है ! 

आप भाग नही सकते। इसका सामना करना ही एक मात्र समाधान है। जीवन में हम हर रोज नई योजनाएं बनाते हैं और वो फेल भी होती हैं तो क्या जीवन छोड़ दे? क्यूँ हम अपनी योजना के विफल होने पर टूट जाते हैं ?? क्यूँ फिर एक और नई शुरुआत नही करते? क्यूँ एक और सकारात्मक योजना नही बनाते ?? एक विफलता से जीवन हार जाना तो गलत है साहब ।

मैं शतरंज के खेल की वकालत करता हूँ इस संदर्भ में। शतरंज के खेल के पीछे एक गहन जीवन दर्शन है। जीवन के समस्याओं को देखने, उनका विश्लेषण करने औऱ तदनुसार अपनी योजना बनाने में बड़ी सहायक है यह खेल। इस खेल में हम सामने वाले के चाल को समझने का प्रयास करते हैं। उसका अध्ययन और विश्लेषण करते हैं। और फिर जो बेहतर समाधान या योजना निकलकर आती है , उसे अंजाम देते हैं। लेकिन ये हमारा बेहतर है। हमारी क्षमता के अनुसार।

सुशांत सिंह के अवसाद के चलते निधन नें समाज को पुनः इस दिशा मे सोचने पर विवश कर दिया है 

यदि चूक गए तो योजना विफल हो जाती है। फिर हम नए सिरे से नई योजना बनाते हैं। नई ऊर्जा के साथ । योजना का विफल होना खेल की समाप्ति नही होती। तात्कालिक विफलता मात्र है। फिर तैयार होते हैं। नई रणनीति , नई योजना के साथ। जीवन के खेल में भी हमें मानसिक दृढ़ता की उतनी ही आवश्यकता है।

बच्चों को शतरंज अवश्य खेलायें। पेशेवर खिलाड़ी बने , न बने ।मास्टर , ग्रैंडमास्टर या चैंपियन बनें न बने , लेकिन शतरंज के खिलाड़ी अवश्य बनें । इस खेल में छुपे जीवन दर्शन को अवश्य सीख लें। जीवन के किसी क्षेत्र में आप टूटेंगे नही। योजना विफल होगी, आप फिर बनाएंगे लेकिन जीवन से हार नही मानेंगे। आत्महत्या नही करेंगे।तनाव और अवसाद से बचाव का एक बेहद सरल तरीका। बच्चों को पढ़ाई की बोझिलता और अन्य मानसिक समस्याओं से निजात दिलाने का सबसे सशक्त माध्यम।नई पीढ़ी को मानसिक रूप से बेहतर करना है तो अब हमें शतरंज को जीवन मे आत्मसात कर लेना चाहिए।

लेखक 

अंतर्राष्ट्रीय निर्णायक धर्मेंद्र कुमार 

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